कई बार बस ऐसे ही चुप रहने का भी तो मन करता है..
किसी के कुछ पूछने पर भी जैसे पाबंदी हो जाए,
गर कोई सवाल उठे भी, तो भी जवाब देना जरूरी ना हो..
बस, ऐसे ही, अपने आप में रह जाएं..
हर बात में कोई बात हो, ज़रूरी तो नहीं..
हर लिखावट में एक कविता हो, ज़रूरी तो नहीं..
बस बैठे बैठे, अपने आप में कुछ लिखा जाए, ....
बस ऐसे ही बैठे रहें.
क्यों हम हर पल से कुछ उम्मीद रखें,
कि वो आया है, तो कुछ पूरा कर के जाए..
क्यों हर होनी का अर्थ समझें,
कि अब हुआ है, तो कुछ समझा कर जाए...
ज़िन्दगी बस शब्दों में ही जिये जा रहे हो,
बस ऐसे ही चंद लम्हें शून्यता में तो रहो,
पता नहीं, कब फिर...
.... ऐसे ही बैठे रहें....