पुरूष..!!
जग ने कहा कि तुम कैसे हो सकते हो एक कोमल हृदय,
तुम तो हो एक पुरुष..
क्योंकि इतना भी आसान नहीं होता
एक पुरुष होना..
कठोरता का ठप्पा तो बचपन से ही लगा दिया जाता है तुम पर
सब कहते हैं कि स्त्री होना कठिन है लेकिन पुरुष होना भी इतना आसान नहीं होता...
कम से कम स्त्रियों को दुःख में,अबला, बेचारी, असहाय कहकर तो सम्बोधित कर सकते हैं ..
लेकिन पुरुष तो अपना दुःख भी प्रकट नहीं कर सकता और ना ही सहजता से प्रेम ही प्रकट कर सकता है...
मन तो तुम्हारा भी करता होगा, कभी कभी फूटकर रोने को, हृदय में पल रहे गुबार को निकालने का...
परंतु तुम नहीं रोते क्योंकि समाज ही तुम से फिर कहेगा कि तुम्हें ये शोभा नहीं देता क्योंकि तुम पुरुष हो...
तुम्हें तो सिखाया जाता है धीर गम्भीर बने रहने का तरीका और तो और अन्तर्मुखी बनना तुम्हारी मजबूरी है,तुम नहीं चाहते कि कोई भी तुम्हारे भावों को पढ़ पाए...
नवयुवक होते हैं कितनी आशाएं लगा ली जाती है तुमसे
अपने बारे में ना सोचकर, सोचते हो तुम अपने माता-पिता के विषय में... क्योंकि पूरा करना है तुम्हें उनके सपनों को..
कंधों पर परिवार की उम्मीदों की गठरी और आंखों में कुछ सपने लेकर निकलना पड़ता है घर से दूर...
कितनी जद्दोजहद रोजी रोटी की जुगाड़ के लिए,पल पल क्षीण होता तुम्हारा खुद का अस्तित्व...
जीवन भर करते ही तो रहते तो सबकी इच्छाओं की पूर्ति..
खुद का जीवन ऐसे ही गुज़ार देते हो सिर्फ परिवार के लिए
और जो भी जीवन भर एकत्र करते हो वो भी तो अंतिम क्षणों में अपनों में बांटकर जाते हो...
क्या ले जाते हो तुम अपने साथ... कुछ भी तो नहीं।।
बस रह जाते हैं तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारा ऐनक और छड़ी...
क्योंकि पुरुष होना इतना भी आसान नहीं होता.....!!!!