एक बुलबुला - सा नीर का लगने लगा है
उदासीनता में धैर्य भी खोने लगा है
न जाने कब टूट जाएं सांसो की लड़ियां
वक़्त भी रह- रहकर करवट बदलने लगा है
बन चले मुसाफिर उस राह के
जिस राह से अनजान है अब तक
बाँध करके कफन, हौसलों को संग ले
यूं ही चलते रहेंगे जान है जब तक
अंतरिम ये फैसला, दिल का है हौसला
समय कम और काम बहुत ज्यादा है
कुछ कर गुजर जाएं, जीवन खाक हो जाए
अपना तो बस एक यही इरादा है
डूबते सूरज को कोई सलाम नहीं करता
शायद दुनियां की यही रीति है
खाली हाथों से दूर रह
भरे भंडारों से ही प्रीति है
तू तो फक्कड़ है पुष्पा
तेरी कोई पहचान नही
तन्हाइयों से दोस्ती कर ली
हैं अपने से, तू उनसे अनजान नही
कट जाएगा तेरा ये सुहाना सफर
भूल जाएगी तू जिंदगी का असर
नहीं करेंगे बेवफाई तुझसे
सिवा इनके न आयेगा तुझे कुछ नजर
......... ✍️पुष्पा शर्मा