मजबूर "दिल" की दास्ताँ मेरे इष्टदेव के चरणों में
दिल के आशियाने में, कोई और नजर आता ही नहीं
एक तेरी ही मूरत बसी, कोई और भाता ही नहीं
कैसे समझाऊं इस नादान दिल को
मजबूर है इतना कि इसे, कुछ समझ आता ही नहीं
हर सांस में तू ही तू है, तन - बदन में तेरी ही महक है
तुझी से शुरू होती ये फुलवारी, तुझी से मेरे मन की चहक है
..... ✍️पुष्पा शर्मा