कविता
लोग हर मोड़ पे रुक रुक ,के संभलते क्यूँ है ।
इतना डरते है तो फिर ,धर से निकलते क्यूँ है ।।
मैं न जुगनू हूँ ,न तारा ,न दीपक हूँ ।
रोशनी वाले मेरे ,नाम से जलते क्यूँ है ।।
नींद से मेरा तालुकात ,ही नहीं बरसों से ।
ख्वाब आ आ के ,मेरी छत पर टहलते क्यूँ है ।।
मोड होता है जवानी का ,संभलने के लिए ।
सब लोग यही आ आ ,के फिसलते क्यूँ है ।।
तुम मेरे हमसफर ,बन जाओगे ।
ये तो मालुम ,न था मुझें ।।
पर इस दिल को ,तुम्हारी आस क्यूँ है ।
तुमको तो दिल में बसा लिया है ।।
फिर भी ये आँखें तुम्हें ,देखने व्याकुल क्यूँ है ।
तुम दिल के रहनुमा हो,फिर भी तुम्हे पाने की आस क्यूँ है ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ।