मुहावरा .बांल की खाल निकालना "
** कविता **
कुछ लोग ,शरारती होते है ।
अपने आपको ,शातीर समझते है ।।
किसी की बात ,जरा भी नहीं सुनते है ।
हर बार अपना ,ही अडंगा लगाते है ।।
अपने आप को ,बुद्धिमान मानते है ।
समझाने पर भी ,नहीं समझते है ।।
अपनी बात पर ,सदा अडे रहते है ।
बांल की खाल ,निकाला करते है ।।
ऐसे लोग जल्दी ,धूलधूसरित होते है ।
लोगों की हंसी के पात्र ,बन कर नजरों से गिर जाते है ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।