हर शाम अक्सर तू
पूछती है कया खाओग?
में कहेता हूं
कुछ भी !
वैसे शादी के बाद
हप्ते में एक बार
ग़म खा लेता हूं!
हर शाम तू सिर्फ
पूछती है मेरी मर्ज़ी,
मगर खिलाती तो है
खुद की मर्ज़ी का!
हम जुड़े थे अपनी
मर्ज़ी से।
तू मेरी मर्ज़ी थी ,है और
रहेगी!
काश!
मुझे मेरी मर्ज़ी नजर
आजाये!
अनिल भट्ट