Hindi Quote in Motivational by Prabodh Kumar Govil

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"देश दीमक"
एक बार टेलीफोन विभाग में मुझे ऐसे कर्मचारियों के बीच "मोटिवेशनल लेक्चर" देने के लिए आमंत्रित किया गया जो पूर्व में संपन्न हुई पदोन्नति परीक्षाओं में सफल नहीं हुए थे और अब कभी पदोन्नति प्रक्रिया में भाग ही नहीं लेते थे।
कार्य और कर्तव्य के प्रति उनका मनोबल बनाए रखने के लिए विभाग ने अपने प्रशिक्षण केंद्र में ये पहल की थी। विभाग को लगता था कि इस तरह पिछड़ गए कार्मिकों ने अगर आगे बढ़ने में रुचि नहीं दिखाई तो इन पर नए व जूनियर लोगों को अफ़सर बना कर रखना पड़ेगा जिससे कार्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और मानव संसाधन विकास संबंधी समस्याएं आएंगी।
मैं खासी सकारात्मकता और उत्साह के साथ वहां पहुंचा।
अपने व्याख्यान के बीच थोड़ी ही देर में मुझे महसूस हुआ कि ये लोग अपने काम और विभाग से ही नहीं, बल्कि अपने जीवन से ही बुरी तरह ऊबे हुए हैं।
वे हर बात का उत्तर नकारात्मकता, व्यंग्य और उपहास से देते।
मेरे हर उदाहरण का तोड़ उनके पास था।
वो कहते थे- अफ़सर बन कर क्या मिलता है, हर तीन साल बाद ट्रांसफर होगा, बाल - बच्चों की पढ़ाई में बाधा पड़ेगी। घर- परिवार से दूर अकेले भटकना पड़ेगा। शाम को देर तक काम करना पड़ेगा, अभी तो हम पांच बजते ही फ़ाइल बंद करके निकल लेते हैं। वेतन में जो बढ़ोतरी होगी वो बार - बार नई जगह जमने में ही बराबर हो जाएगी।
मैंने कहा- आप बच्चों को पढ़ाना क्यों चाहते हैं?
कुछ उत्तर मिले, थोड़ी सुगबुगाहट शुरू हुई। मैं आगे बोला- अच्छा चलिए, अपने हाथ उठा कर मुझे बताइए कि आप में से कौन - कौन अपने बच्चों को जीवनभर अधीनस्थ कर्मचारी या लिपिक बनाए रखना पसंद करेगा? ये चाहेगा कि उनकी जीवन में कभी कोई तरक्की न हो?
वे टूटने लगे! हाथ नहीं उठे। वे एक - दूसरे की ओर देखने लगे।
दरअसल हम सब जानते हैं कि हमारा जीवन केवल हमारा अपना नहीं है। हम दुनिया से जाते समय चंद "अपने" छोड़ कर जायेंगे। हम सपने में भी नहीं सोचते कि उन्हें हमारे बाद काला भविष्य दिखे।
हम सब उसी डाकू जैसा दिल रखते हैं जो दूसरों को लूट कर ख़ुश तो हो सकता है पर ये नहीं चाहता कि उसकी संतान भी कभी डाकू बने।
( नोट : कृपया इस आलेख का शीर्षक "देश दीपक" पढ़ें, ये मेरे एक मित्र का नाम भी है।)

Hindi Motivational by Prabodh Kumar Govil : 111425222
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