उपरवाले अब कितना दर्द दिखाएगा तू
भूख के मारे कितनो को मरवाएगा तू
महामारी से पुरी दुनिया तडपड रही है
अपनो से अपनो की दुरीया बढ रही है
बेकार है हर मानवी आज पूरे संसार में
खाने के लिए पेट की चीख निकल रही है
तू तो द्वार बंद करके बैठ गया है पर देख
रास्ते पे भूखो की पुरी टोली खडी रही है
ना पैसा है, ना घर है, धूपमें चल पडे इंसान है
औरत खुद को सौंप पैसे की भीख मांगती है
अमीर तो दान देके तसवीर खिचवाते है
मजबूरी की अच्छी वो हंसी भी उडाते है
बस कर तेरा ये रौद्र रूप दिखाना ओ खुदा
तेरी कसौटी में गरीब ही क्यों मरते जा रहे है
बिंदी पंचाल "बिंदीया"
वडोदरा
6/5/2020