आज इस युग में जब भावनाए और संवेदनाए भी पैसे और पद में तौली जाती है तो हर नारी अपने आप को ठगा सा महसूस करती है,,,। त्याग और स्नेह के बदले में मिली उपेक्षा से उसे हताशा महसूस होती है ,, वह चाहती है की समाज उसे सिर्फ किताबो में या नारो में सम्मान न दे वरन उसके अस्तित्व को पहचाने ..
उसके त्याग और बलिदान को स्वीकारे।और यही बात उसे अपने अस्तित्व कि तलाश के लिए प्रेरित करती है,,,,। उसे भी छटपटाहट होती है कुछ कर गुजरने की,,,, कुछ कर दिखाने की। यही से नारी अपनी तलाश में निकल पड़ती है,,,
यही तलाश उसे एक विश्वास देती है कि वह कुछ अद्भुत करने के लिए इस दुनियां में आयी है,,, , तब वह यह ठान लेती है कि चाहे कुछ हो जाए , उसे प्रगति के पथ पर बढ़ना ही है , चाहे आंधी आये या तूफ़ान ,,,,, उसके कदम अब नहीं रुकेंगे,,,,