लाल-लाल पंखुड़ी से होंठ
मृदु तने-सी कवली काया।
तीक्ष्ण-तीक्ष्ण काटों से चक्षु
छद्म रूप-सी धूमिल माया।
तरू-पात सी जु़ल्फे लहराए
धुर्त बावरे मन को युँ बहकाए।
रब-ईश्वर न समझ में आए
आंखों से नैतिकी औझल हो जाए।
सही-गलत ह्रदय को ना भाए
पतित मन जहन्नुम में जाए।