"ऋषि और इरफ़ान"
मानव की मृत्यु को अपनी मृत्यु के
आईने में प्रतिबिंबित कर गए
दोनों की मृत्यु के बाद फ़िल्मी दुनिया
का जैसे सूरज अस्त हो गया हो
लौट कर फिर पूरा निकलने के लिए,
लड़खडाते अंधेरों के पैर संभल जायेंगे
बुझती आँखों में रोशनी फिर आएगी
एक नए संसार के द्वार फिर खुल जायेंगे
भविष्य वर्तमान को पीछे धकेल देगा
खोई उर्जा के पंख फिर निकल आयेंगे,
जीवन के लोक में खुद ही लीक बनानी है
उस लीक को छोड़ जाना है दूसरों के लिए
जाते जाते अपनी सांसों को घोल जाना है
पूरे शौर मंडल में जहाँ से कुछ राही
अपने डूबते जज्वातों में प्राण फूंक पायें,
दुर्गम भूमि पर पगडण्डी बना कर
कोई और ऊँचाइयों कि आत्मा को
खोज कर सफलता के पहाड़ बनाएगा
इन दोनों तारों का टूटना
एक आकाश बनाने का शून्य आकार है
जहाँ निरंतर गढ़ी जायेगीं दिव्य आकृतियाँ!
रचनाकार-शिव भरोस तिवारी ‘हमदर्द’