नियति
निठुर नियति के हाथों में, सब प्राणी जाते रहते हैं।
कोई भोगे राजभोग , कोई हाट बिकाते रहते हैं।
ना जाने कब,कैसे,किसको,कहाँ पडे़ हैं रोना।
सब कुछ नियति उसी के हाथों,मिट्टी हो या सोना।
एक डाल के फूल खिले दो,नियति ने डाला फेरा।
इक को मसला क्रूर चक्र ने,इक का बना है सेहरा।
नियति विवस भी हुई सती ,जो अग्नि परीछा देती है।
जिसके दामन में था त्रिलोक,पथ वन का वह चुन लेती है।
नियति के साथ सभी पल कटते हैं,कोई रोते हैं कोई हंसते हैं।