शायद , रुह ए मस्त नादाँ को समज ना पाया
ना लफ्ज ना जजबात ,मेरे कीसी काम आया
बडा सुकुन था, दिल ए यार हमदर्द पाकर ही
मगर ,अफसोस है दिल ए नूर दोस्ताना ना पाया
उफ ! कसुरवार मैंही था ,कमियों का सागर भी
आब ए हयात आप की रुहानियत समज ना पाया
बहुत रंगीनिया ,दिल ए मस्त शोहरत यहाँ सदा
मगर , मेरी रुह को कोइ कतई समज ना पाया
बस ,राहे गुम को तलाश अपनी ,कस्ती अपनी भी
मौज ए मस्त दरिया दिल, सफर ख्त्म कर पाया