हम दीवाने थे दीवाने ही रहें,
हम नये शहर में रहकर भी पुराने हीं रहें..!
दिल की बस्ती में हजारों इनकलाब आए मगर,
दर्द के मौसम सुहाने थे सुहाने हीं रहें..
हमने अपनी सी बहुत की,
वह कम्बख्त पिघला न कभी,
उसके होठों पर बहाने थे, बहाने हीं रहें..!
हिजरत करने से कुछ हासिल नहीं हुआ,
हम अकेले थे अकेले ही रहे..!
जख़्म खा कर मुस्कुराएँ ये शर्त है सैयाद की,
अब थक चुका हूँ मै ये नजारा अदा करते हुए,
ए मेरे आजाद "पंछी" बन गया हूँ मै "गुलाम",
तेरी "आजादी" का "जुर्माना" भरते हुए..!