नसीहत
कदम भर सम्भल करके चलना पडे़गा।
नहीं तो जहाँ में भुगतना पड़ेगा।
सुकर्मो को कर अपने मन को बदल कर।
विधाता के नियमों को सहना पड़ेगा।
कभी भूलमत करना जीवन डगर पर।
अहं बढ़ गया तब तो गिरना पड़ेगा।
जो जिसने किया है उसका उपकार मानें।
नहीं तो ये संताप सहना पड़ेगा।
हैं स्वार्थ के जग में सभी बन्धु भाई।
तुम्हें ही शमा बनके जलना पड़ेगा।
तू निश्छल कर्म कर चलो नित धर्म पर
तो ईश्वर को कल्याण करना पड़ेगा।
ये मन हार करके आजा हरि की शरण में।
उसी की कृपा से ही जीवन बनेगा