भारत में उसे जन्म ही नहीं, नाम भी मिला- रसबाला।
खाड़ी में कटी ज़िन्दगी ने उसका दीन- ईमान तो बदला ही, नाम भी बदल डाला...वो रसबानो हो गई।
बरास्ता सोमालिया, एक अमरीकी सैनिक के साथ उसकी ज़िन्दगी क्या जुड़ी, वो रस्बी हो गई।
लेकिन उसका पाला मां से तो हर जगह पड़ा। एक मां ने उसे पैदा किया था, एक मां ने उसकी परवरिश की। और एक दिन एक मां वो ख़ुद बन गई।
और तब उसने जाना कि मुल्कों की ये सरहदें जिनके लिए हैं, उनके लिए होंगी...एक मां को तो हर दायरे में मां ही होना होता है। "मां" इन सब सरहदों से ऊपर है।
ये दुनियावी सरहदें मां के न रंग बदल सकती हैं और न ढंग !