वह भी एक दौर था, जब नज़ाकत से पलकें झुका करतीं थी,
कुछ इस तरह से प्रेमियों की पहली मुलाकात हुआ करतीं थी,
इशारो इशारो में कुछ बातें हुआ करतीं थी, बाकी सब बातें खत में हुआ करतीं थी,
जब जब खत खुलते इक खुशबू आया करती थी, वह खुशबू लहजे से आया करतीं थी,
उन ख़तों में सिर्फ अल्फ़ाज़ नहीं होते थे, इक इश्क़ था जो बसेर करता था,
कोई इज़हार ए महोब्बत करता था, तो कोई इन्कार ए महोब्बत भी करता था,
और एक यह दौर है, जहां सब कुछ होने के बावजूद अक्सर नज़रें मिलाई नहीं जातीं चुराई जातीं हैं..!