सिर्फ आत्मसमर्पीत भक्ति उसको पाती है,अघोर साधना उसको आती है,
दुनिया से परे है जो वो तो मेरा बैरागी है।।
भस्म रमा कर शरीर पे देखो तुमको ये बताएगा,शरीर तो नश्वर है प्यारे जो एक दिन राख बन जाएगा, मृत्यू का स्वामी है वो तो तेरे डर को दूर भगाएगा,महादेव की शरण मे आकर तू मोक्ष को पाजाएगा, शमशान जिसका बसेरा है,आदियोग का वो तो ज्ञाता महादेव मेरा है,
सिर्फ आत्म
समर्पीत भक्ति उसको पाती है,अघोर साधना उसको आती है, दुनिया से परे है जो वो तो मेरा बैरागी है।।
बेल की वो सवारी करता भूतों के संग वो रहता,उसके एक हाथ मे त्रृषूल और दुसरे हाथ मे डमरू सज्ता,
बेल पत्र पूजा मे चडते सब दूध से उनका अभिषेक करते,
सर्प कण्ठ मे तो चन्द्रमा और गंगा सर पे बस्ते,
उसने भक्ति की शक्ति को बतलाया है बैराग छोर ग्रहस्त जीवन को अपनाया है,
मेरा महादेव तो पर्वत पुत्री गौराजी से बियाह है,
सिर्फ आत्मसमर्पीत भक्ति उसको पाती है,अघोर साधना उसको आती है, दुनिया से परे है जो वो तो मेरा बैरागी है।।