प्राकर्ति ने आज देखो अजब खेल रचाया है, इंसानो को अपने ही घरों मे कैद कर के जानवरों को आजाद कराया है।। मेरी बनाये नियमों को क्यूं तुमने तोडा था, पुछ रही है क्रोध में प्राकर्ति क्यूं तूमने मूझको नोचा था, इतना अन्न दिया था तुमको फिर भी चेन ना तुमको आया था, क्यूं मेरे बनाये जीवों को तुमने पेट भर के खाया था, पीड़ा सहकर भी बैज़ुबानो को सालों तक पिंजरे मे बंद रेहना था, न्याय कहता है उसी तरहा तुमको भी उस घुटन को सहना था, सहनशीलता खोकर मेने तब ये रूप दिखाया है, इतने अरसे जो सहा मेने उस पीड़ा का एहसास कराया है, प्राकर्ति ने आज देखो अजब खेल रचाया है, इंसानो को अपने ही घरों मे कैद कर के जानवरों को आजाद कराया है।। पाप किया किसी ओर ने फल मेने पाया है, पुछ रहे हो किसी ओर के कर्मो का दोष क्यूँ हमारे हिस्से आया है, मेरे लिये जितना दोष उसका उतना ही दोष तेरा है, मुझको गंदा कर कर के तूने भी मुझसे मुह फेरा है, पेड़ काट कर तुमने मेरे सुन्दर घर को तोड़ा है, अति लालची होकर तुमने मेरा दामन छोड़ा है, मेरि बनाई दुनिया तुमने अपने लालच से चलायी है, इसिलिए आज तुमने अपने लालची होने की सज़ा पाई है, प्राकर्ति ने आज देखो अजब खेल रचाया है, इंसानो को अपने ही घरों मे कैद कर के जानवरों को आजाद कराया है।।