"गर्वहीन और कर्मशील बने"
मनुष्यों को गर्वहीन और कर्मशील बनकर सुकर्म के माध्यम से अपने सम्पूर्ण जीवन को गति प्रदान कर ईश्वर द्वारा प्रदत्य संसारिक सुखों को प्राप्त कर स्वयं एवं अपने कुटुंब को गौरवमयी जिंदगी का सम्बर्धन करना चाहिए जैसे अग्नि अपनी लपटें फैला कर अपना प्रकाश चहुं ओर दूर दूर फैलाती है इस प्रकार मनुष्य को सत्यमार्ग का अनुशरण कर अपने जीवन में अपनी कीर्ति का प्रकाश फ़ैलाने का यत्न और प्रयत्न करना चाहिए! ऋतुओं के अनुरूप खुद को ढाल कर अपने गृहस्थ जीवन को सुख, संपत्ति,और सम्मान के लिए संयम पूर्वक खुद को कर्म भूमि में उतारना चाहिए कोई भी मनुष्य यह मत सोचे कि दूसरे ब्यक्ति का सहारा लेकर वह अपनी जिंदगी को सुख दे पायेगा?ऐसा होते कभी नहीं देखा गया है अपबाद में किसी का साथ किसी को आगे बढ़ने में मदत अवश्य करता है मनुष्य के पास बुद्धि से बढ़ कर कोई बल नहीं होता है अपने अंदर छिपी अनंत बुद्धि और बल को ब्यवहार में ला कर कर्म कि सततता पर झोक देने से आपका बल, महत्व, और सामर्थ सर्वविदित हो जाता है मेरा ज्ञान खुद के लिए पर्याप्त है मै दूसरों से बलवान हूँ मुझ में सामर्थ प्राप्त है मै दुनिया के बड़े-बड़े कार्यों को अकेले कर सकता हूँ की शैली पर हर मनुष्य को अपने कार्यों का संपादन करते जाना है। इस प्रकार के सारे कार्यों को स्वतः गति मिल जाती है बुद्धमान मनुष्य अपनी खुद कि योग्यता के बल पर अपना एक मुकाम बनाता चला जाता है उसका ज्ञान उसकी विनम्रता मनुष्य को उसकी चाही कई यात्रा को सफलता पूर्वक सम्पन्य करा देता है खुद को आगे उठते देखना चाहने वाले ब्यक्ति सदा अपने कार्य स्वयं करते है हितकारी मित्रों से दोस्ती करते है अपनी बुद्धि से मित्र के लिए भी प्रेरक और रक्षक बन जाते है वो खुद अपने कानों से कभी दूसरों कि बुराई नहीं सुनते है और नहीं कभी किसी कि बुराई करने के लिए अपनी जिभवा का इस्तेमाल करते है वो सदा कल्याणकारी बात करते है और वही बात सुनने के आदी होते है जो मनुष्य खुद कि राह बना कर जिंदगी कि सुखभरी यात्रा कि शुरुआत करता है वो कभी किसी कि परवाह किये निरंतर अपनी मजिल को पाने के लिए आगे बढ़ता रहता है उसे किसी कि सहायता कि आवश्यकता नहीं महसूस होती है वो ब्यक्ति सदा अकेले चल कर उत्तमता को प्राप्त होते है वह सदा उत्तम बिचार वाले होते हैं।
किताब-"ज्ञान तत्व" संग्रह से
लेखक-शिव भरोस तिवारी "हमदर्द'