"डर"
मुझे डर है की एक दिन
खत्म हो जाएगी पूरी दुनिया
न होगा कोई दिन न होगी
कोई रात्रि घडी भी नही होगी
चमकते तारे पिघल जायेंगे
नक्षत्रों की लपटें धू धू करेंगी
सब धुआं धुआं हो जायेगा
धुआ उड़ जायेगा धुआं में
न होगी धरा नीर चुक जायेगा
जीव जन्तु बिलुप्त हो जायेगें
शहर गांव गली मोहल्ला सब
छप चुकें होंगे एक किताब में
फिर कौन लिखेगा ‘क’ यानि
करना कहाँ या फिर करोना
उछलती कूदती हवा लिखेगी
‘म’ यानि मन महान या मरना
स्मृति गढ़ लेगी यह पूरा द्रश्य
इतिहास दर्ज करेगा हर शब्द
शायद कोई रहे जिनके होंठो में
रख जाएं मीठे गीतों के शब्द !
किताब-"भारत बन्दी के इक्कीस दिन''
लेखक-लेखक-शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'