कल तक जहाँ मिट्टी मे गुण था. लिपटते थे ,बालकपन मे. वही आज हवाओं मे जहर है .
ये कैसा गाँव ,और कैसा शहर है . कल तक जहाँ गले मिल हृदय का, हृदय से स्पर्श होता था .
आज वहीं दूर से छू जाने पर इन्सान बार -बार हाथ धोता है .
बहुत खुश थे हम विकास की ओर जा रहे हैं .नित नई-नई उपलब्धियाँ पा रहे हैं .
रोज भागते -भागते इस कदर रूक गये .जैसे अतीत को हम पुनः दोहरा रहे .
क्या अतीत हमे स्वीकारेगा, पहले की तरह प्यार से पुचकारेगा.
जिसके रग रग मे हमने जहर भर दिया नाम विकास का दे उस पर कहर किया है.
यह तो तय है हम फिर से अपने घर मे आयेंगे. पर जरूरी नही चमकती कुटिया ही पायेंगे .
#गुणवत्ता