मनुष्य ने लांघकर सीमाएं अपनी
जब-जब प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ा है
तब तब ले अकाल, भूकंप, सुनामी
का रूप कुदरत ने कहर ढाया है।
फिर भी ना समझा ये मूर्ख इंसान
करता रहा प्रकृति से अनवरत छेड़छाड़
कोरोना हैं उसी अति का भयंकर परिणाम।
आज इंसान दूसरे इंसान से मिलने से
घबरा रहा है बंद कर खुद को
चारदीवारी में अपनी सांसे बचा रहा है।
सरोज ✍️