Hindi Quote in Religious by ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़

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[माता कुष्मांडा के स्वरूप को बारंबार प्रणाम नमन नमस्कार यह आज का चौथा नवरात्रा ब्रह्मदत्त] ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़:
नवरात्र का चौथा दिनः पूजन विधि और कथा
आज माता दुर्गा का शुभ चौथा नवरात्रि है माता
कुष्मांडा देवी के रूप में ब्रह्मदत्त त्यागी
नवरात्र का चौथा दिनः पूजन विधि और कथा
नवरात्र का चौथा दिन: पूजन विधि और कथा
कूष्माण्डा माता: मां दुर्गा अपने चतुर्थ स्वरूप में
कूष्माण्डा के नाम से जानी जाती हैं. नवरात्र के
चौथे दिन आयु, यश, बल व ऐश्वर्य को प्रदान करने
वाली भगवती कूष्माण्डा की उपासना-आराधना
का विधान है.
मां कूष्माण्डा
मां दुर्गा अपने चतुर्थ स्वरूप में माता कूष्माण्डा के
नाम से जानी जाती हैं. नवरात्र के चौथे दिन आयु,
यश, बल व ऐश्वर्य को प्रदान करने वाली भगवती
कूष्माण्डा की उपासना-आराधना का विधान है.
अपनी मंद हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को
उत्पन्न करने के कारण इन्हें माता कूष्माण्डा के
नाम से अभिहित किया गया है.जब सृष्टि का
अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार
परिव्याप्त था तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत हास्य से
ब्रह्माण्ड की रचना की थी. अतः यही सृष्टि की
आदि स्वरूपा आदि शक्ति मानी जाती हैं. इनके
पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व था ही नहीं. इनकी आठ
भुजाएं हैं. अत: ये अष्टभुजा देवी के नाम से
विख्यात हैं. इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डल,
धनुष बाण, कमल, पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र
तथा गदा हैं. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और
निधियों को देने वाली जपमाला है. इनका वाहन
सिंह है.
अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न
करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के रूप में
पूजा जाता है. संस्कृत भाषा मेंमाता कूष्माण्डा को
कुम्हड़ कहते हैं. बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें
सर्वाधिक प्रिय है. इस कारण से भी मां कूष्माण्डा
कहलाती हैं.
सर्वप्रथम मां कूष्मांडा की मूर्ति अथवा तस्वीर को
चौकी पर दुर्गा यंत्र के साथ स्थापित करें इस यंत्र
के नीचे चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं. अपने
मनोरथ के लिए मनोकामना गुटिका यंत्र के साथ
रखें. दीप प्रज्ज्वलित करें तथा हाथ में पीले पुष्प
लेकर मां कूष्मांडा का ध्यान करें.
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्.
सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा
त्रिनेत्राम्.
कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्र गदा
जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या
नानालंकार भूषिताम्.
मंजीर हार केयूर किंकिण रत्नकुण्डल मण्डिताम्.
प्रफुल्ल वदनां नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग
कूचाम्.
कोलांगी स्मेरमुखी क्षीणकटि निम्ननाभि
नितम्बनीम् ॥
स्त्रोत मंत्र
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्.
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्,
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दुःख शोक निवारिणाम्.
परमानंदमयी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
कवचमत्र
हसरै मे शिर: पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्,
हसलकरी नेत्रथ, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे वाराही उत्तरे तथा.
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम.
दिग्दिध सर्वत्रैव कू बीजं सर्वदावतु॥
भगवती कूष्माण्डा का ध्यान, स्त्रोत, कवच का
पाठ करने से अनाहत चक्र जाग्रत हो जाता है,
जिससे समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं तथा आयु, यश,
बल और आरोग्य की वृद्धि होती है.
जानकारी के अंत में मां कुष्मांडा देवी की पूजा
सच्चे हृदय और मन से करें
ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़
समाप्त
॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डा
विच्चे नमः ॥

Hindi Religious by ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़ : 111377017
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