खुद से रुठा दिल, आज मनाना चाहती हूँ
जो पसंद आए एसी बात बताना चाहती हूँ
ए दिल मान भी जा, अब छोड़ दे ये गुस्सा
शीशे से तुझे, अब पत्थर बनाना चाहती हूँ
छोटीसी जिंदगी में क्या कुछ नहीं झेला है
तुझे जूठे दरींदो से, अब बचाना चाहती हूँ
कर बैठता है, हर बार क्यो भरोसा गैर पर
यहाँ हर कोई तेरा नहीं है जताना चाहती हूँ
चार दिन की चांदनी है जिंदगी " बिंदीया"
जिंदगी क्या हकिकत, दिखाना चाहती हूँ
बिंदी पंचाल "बिंदीया"