आसमानों को छूने की आशा
रानी के हाथ के बने परांठे मोहल्ले में चर्चित थे तो भला नरेंद्र कैसे ना दीवाना होता। ये अलग बात है कि परांठे पेट के रास्ते दिल में जा बसे थे। त्यौहारों के समय तो जैसे लॉटरी लग जाती थी सबकी। फिर एक दिन वो मनहूस सी बीमारी आई, जाने क्या हुआ पर रानी का एक पैर सूखने लगा जैसे कोई हरी लकड़ी सूखती हो। किसी को कुछ पता ना चला क्या हुआ पर हाँ रानी अब दोनों पैरों पर बराबर चल ना पाती थी। पूरे मुहल्ले का स्वाद कसैला हो चुका था। खुसर फुसर होती की अब इसकी शादी कैसे होगी? नरेंद्र ने हिम्मत करके अपने बचपन के प्यार का इजहार किया पर समय ही ऐसा था कि रानी को उसका प्यार मात्र सहानुभूति ही लग रही थी। जहां रानी का परिवार और पूरा मोहल्ला खुश था वहीं नरेंद्र का परिवार नाराज था अपने लड़के के फैसले थे। पर क्या करते? लड़का अपने पैरों पर खड़ा था और रानी को ब्याह कर दूसरे शहर ले गया। रानी को नरेंद्र कभी किसी बात की कमी महसूस नहीं होने देता पर शायद दिल ही दिल में रानी को कसक रहती जैसे वो नरेंद्र पर बोझ है। रानी खाना बनाने के साथ हर काम में सुघड़ थी पर घर से बाहर कम ही जाती। उसे लगता कि इतने बड़े शहर में उसकी कमी का कद उससे ऊंचा ही दिखेगा। नरेंद्र भी जिद नहीं करता था। एक दिन नरेंद्र के ऑफिस जाने के बाद रानी की तबियत बिगड़ गई और उसकी हिम्मत भी ना थी कि बिस्तर से उतर कर कुछ बना सके। जब नरेंद्र वापस आया तो रानी बिलख बिलख कर रोते हुए मिली। सिर्फ यही कहे जा रही थी कि मैं किसी काम की नहीं। नरेंद्र ने समझाया कि तुम अकेले रहती हो, दोस्त नहीं है इसलिए ऐसी सोच हावी हो रही है। एक काम करो ऑनलाइन ही अपने शहर की पुराने दोस्तों को खोजों और बाते करो। नरेंद्र की तरकीब काम आई। रानी पहले से ज्यादा खुश रहती। शुरू शुरू में हिचकिचाहट हुई बाद में अब तो दिन कैसे निकल जाता पता ना चलता। बातों बातों में दोस्तों ने कहा कि तुम अपनी रेसिपी शेयर करो। धीरे धीरे उसके बनाए खाने की रेसिपी प्रसिद्ध होने लगी। ऑनलाइन कई शेफ प्रतियोगिता जीत चुकी रानी अब यूट्यूब पर अपने चैनल पर लाइव खाना बनाना सिखाती थी। नरेंद्र ने भी भरपूर साथ दिया। सबके सहयोग और सलाह पर उसने केटरिंग एजेंसी का काम शुरू किया जिसमें नरेंद्र ने उसे पूरा सहयोग किया। आज स्टेज पर रानी को साल की महिला उद्यमी का खिताब दिया जा रहा था। अपनी व्हीलचेयर से खड़ी होकर जब रानी ने माइक पकड़ा तो उसे अपनी शारीरिक कमी अपने उद्यमों के सामने काफ़ी बौनी नजर आ रही थी। मुस्कराते हुए उसने अपना भाषण ख़त्म किया और हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज रहा था जिसमें सबसे जोरदार ताली नरेंद्र की थी।
©सुषमा तिवारी