वो कराह रही थी
वो तड़प रही थी
दर्द अब बर्दास्त के बाहर
पति से कह रही थी
मैं क्या करूं पता नहीं
मालूम तुम्हारी खता नहीं
पर वीआईपी लोगों को आना है
हमको यूँ ही सताना है
उनकी सुरक्षा ज्यादा जरूरी है
तुम मर भी जाओ किसको पड़ी है
ये लाल बत्ती इन्हें हमने ही दी है
ग़लती जान कर भी भयंकर की है
अब ये हमारी लाशों पर सुरक्षा पाएंगे
और मरती रहोगी तो भी वोट मांगने आएंगे
अब प्रजातंत्र है प्रिय
देखो प्रजा को मरना ही पड़ेगा
अब इस वीआईपी कल्चर का
हमे कुछ करना ही पड़ेगा
चलो आज तुम रो लो चिल्ला लो
मैं कुछ कर ना पाउंगा
वादा रहा आने वाली पीढ़ी को
इसके दुष्परिणाम जरूर बताऊँगा
सुने ना सुने कोई आवाज़ हमारी
पर ईन लोगों से गुहार लगाऊंगा
©सुषमा तिवारी