में खुद को ही गहराई आे में ढूंढता हूं। सब तो है यहां फिर भी तन्हाई ओमे गुमाता हू।
ना कोई वजह फिर भी सजा में पाता हू। ना कोई गुन्हा फिर भी गुनेगार लगता हूं।
पता नहीं राहे अब कहा से गुजर के जाएगी। खुद को ही अंधेरा बना के उजाले की उम्मीद में करता हू।
- રાધેય