Hindi Quote in Poem by Satish Sardana Kumar

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मुझे पहचानो
मैं ही दंगों में आग लगाता हूँ
मैं ही शांति मार्च में हिंदू मुस्लिम एक हैं का नारा सबसे तेज स्वर में लगाता हूँ
मेरे हाथ का पत्थर ही था जो तुम्हारे माथे में आके लगा
यह भी मैं हीं हूँ जो मरहम पट्टी कर रहा!
मुझे पहचानो
मैं आज का सियासतदां हूँ!
खेद है कि तुम मुझे पहचान नहीं पाए
कि दुखी,खुश और हैरान हूँ!
देशद्रोही और देशभक्ति के सींखचे
मेरे ही है बनाए हुए
एन पी आर,सी ए ए और एन आर सी
के रजिस्टर आजकल जो छाए हुए
उनमें कैद करनी है इंसानियत
ताकि काट सकूं वोटों की लहलहाती
कलदार फसलें
वोट ही निर्णायक है,जो करवाता है
खूनी फैसले
अक्सरियत का जब तक राज चलेगा
अकलियत की गर्दन पर छुरा रहेगा!
अब जो भेदभाव हर गली हर घर है
राजनीति उस यथास्थिति की पक्षधर है!!
एक पाकिस्तान वो था जो सैंतालीस में बना
एक पाकिस्तान हरेक नफरती दिल में बसा!
जलता सवाल है कि हर एक मुसलमान उस वक्त वहां क्यों नहीं भेजा गया,
गर भेज दिया जाता आज वोटों का कारोबार कैसे चलता?
वो जिनके बच्चे जंग में खाक हुए
उनके ही फरजंद दंगे में आग हुए
नफरती वोटों से हमने सरकार बना ली है,
लाशों पर सियासत करके पांच साल चला भी लेंगे
जिनके मरें हैं उनको मुआवजा देकर
दुआ भी लेंगे
पुलिस फौज तो हमारे हाथ में चाबी वाला खिलौना महज,
जज कचहरी वकील मीडिया में गोट भी बैठा लेंगे।

Hindi Poem by Satish Sardana Kumar : 111351378
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