फागुन के दिन आ गये
फागुन के दिन आ गये, मन में उठे तरंग।
हँसी ठहाके गूँजते, नगर गाँव हुड़दंग ।।
हुरियारों की गोष्ठी, चारों ओर गुलाल।
रंगों की बरसात से, भींग उठी चौपाल ।।
अरहर झूमे खेत में, पहन आम सिरमौर।
मधुमासी मस्ती लिये, नाचे मन का मोर।।
जंगल में टेसू हँसे, हँसी गाँव की नार।
चम्पा महकी बाग में, शहर हुये गुलजार।।
प्रेम रंग में डूब कर, कृष्ण बजावें चंग ।
राधा पिचकारी लिये, डाल रही है रंग।।
दाऊ पहने झूमरो, गाते मस्त मलंग।
होली के स्वर गूँजते, टिमकी और मृदंग।।
निकल पड़ी हैं टोलियाँ, हम जोली के संग।
बैर बुराई भूलकर, गले मिल रहे रंग ।।
फाग-ईसुरी गा रहे, गाँव शहर के लोग।
बासंति पुरवाई में, मिटें दिलों के रोग।।
जीवन में हर रंग का, अपना है सुरताल ।
पर होली में रंग सब, मिलें गले हर साल ।।
दहन करें मिल होलिका, मन के जलें मलाल ।
गले मिलें हम प्रेम से, घर-घर उड़े गुलाल ।।
मनोज कुमार शुक्ल 'मनोज'