My New Poem....!!!!
यारों बदलती ज़रूरतों के साथ हमने
लोगों के सख़्त लहजे भी बदलते देखें है
आयात-ओ-रवायतें से भी फ़ासला
रखनेवालों को भी घूँटने के बल देखें है
बदलते वक़्त की दहलीज़ पर बड़े बड़े
सुरमा-खाँ ओ के तख़्त पलटते देखें है
ताज़-ओ-तख़्त पर इतराते शहनशाहों
को रब की बारगाह में सर पटकते देखें है
ज़ुल्मत-ओ-ग़ुरबत में ज़मीन-ओ-आसमाँ
का फ़र्क़ तो पर मंजर के रुख़ बदलते देखें है
वो रब है, कब कहा किसे क्या वो सिला दे
किसे कहाँ कब कैसे मिला दे यह वही जाने
उसकी मसलेहतो का कोई जवाब नहीं वह
पनाहों में रखें जो बंदे वही पाक बनते देखें है
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