तुज को चुभता रहु सामोसूबह ,
कुछ इस तरह तुज में गुलता रहु ।
तेरी हर एक बुरी आदत छूट जाए तब भी,
तब भी तेरी ना छूटने वाली आदत बन के रहू।
निशदिन तू मुज से मुज में ही बदलता रहे,
तब भी तुज में शरारत बन के जिंदा रहू।
तू मुज से खफा हो ऐसा हर दफा हो ,
तब भी में तुज में तेरी वफ़ा बन के रहू।
तू लाख करलो यत्न मुज से दूर रहने को ,
फिर भी तेरी हृदय अवनि में हरपल धड़कता रहू।
"हृदय"