My New Poem....!!!!
*"खता मत गिन ए नादान दोस्ती में,
कि किसने क्या ख़ता क्या गुनाह किया..."*
*"यह दोस्ती तो बस एक एसा नशा है,
जो तूने भी किया और मैंने भी साथ किया..*
“इन्सानी जिस्म में मिली हैं हमें रूह तो,*
*रस्म-ओ-रिवाजों की बंदिशें क्या हैं.....*
*यह जिस्म तो ख़ाक सुपुर्द हो जाना है,*
*बे-शक एक दिन फिर रंजिशें क्या है*.....
*माना अस्पतालों के ख़ज़ाने हैं ज़माने में
पर हर मर्ज़ का इलाज नहीं दवाखाने में...!*
*ला-इलाज-से कुछ दर्द भी चले जाते है,*
*यारों सच्चे दोस्तों के साथ मुस्कुराने मे*....
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