My New Poem...!!!
लफ्ज़ो के सही इत्तेफाक में
यूँ बदलाव बंदे तूं कर के देख
दूसरों को तू देखकर न मुस्कुरा
बस औरों को तूं मुस्कुरा कर देख
वैसे तो हवा भी कहा दिखती हैं
कोशिश से बिना हवा जी कर देख
साँसें भी मोहताज धड़कन की होती है
साँस-ओ-धड़कन पे क़ाबू पा के देख
द्वार-ओ-दिवारों से घर नहीं बनता
मिट्टी के ढाँचे को प्रभु घर बना के देख
कहते है हिमालय समाधि के लिए है
मिट्टी के घर को ही समाधि बना के देख
सच्चे इन्सान को ही प्रभु मिलते है
आदमी से सच्चा इन्सान बन के देख
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