बीच की हूँ मैं धारा,
शिव पार्वती दोनों का स्वरूप हूँ सारा ।
मेरे कदम पूजे जाते हैं हर बार ,
तब भी समाज देखे मुझे तिरस्कृत दृष्टि से हर बार ।
मेरी मोहर धरोहर समझ रखे हर प्राण ।
शिशु या नवविवाहित जोड़े को ,
आशीर्वाद देने आऊँ हर बार ।
तब भी समाज देखें तिरस्कृत दृष्टि से मुझे हर बार ।
ना नर हूँ ना मादा ,
मैं हूँ किन्नर समाज की धारा ।
जो आज भी ढूंढ रही है समाज में
अपने अस्तित्व का किनारा ,
कि देखे समाज मुझे भी अपेक्षित दृष्टि से दुबारा।