ईन सुखे पत्तों सी लगती है कभी-कभी ये जींदगी,
ईन पत्तों जैसे ही तो रंग बदलती है ये जींदगी।
कभी होती है पेड़ की उन शाखाओं पर,
तो कभी जमीन पर होती है ईनकी जींदगी।
वैसे ही तो अपना भी होता है कभी अपनोंसे,
तो कभी ईन्ही अपनों से कहीं दुर होती हैं जींदगी।
कभी बहेते पानी सी चंचल लगती हैं जींदगी,
तो कभी ठहरे पानी जमें बर्फ सी जंजीर लगती हैं जींदगी।
कभी अंधकार से भरी तो कभी चांद-सुरज सी रोशन लगती हैं जींदगी,
कभी शाप-अभीशाप तो कभी मेरी माँ का आशीर्वाद लगती हैं जींदगी।
खुशीयों में उंची हिमालय सी कभी तो गहराई समंदर की लगती हैं जींदगी,
दर्द बांटने वाला अगर मील जायें कोई तो ईन सीधी जमीनों सी लगती हैं जींदगी।
अकेले रास्ते पे चलते चलते बोरींग सी लगती हैं जींदगी,
जाना-पहचाना अगर मील जाये कोई तो इंट्रेस्टिंग लगती हैं जींदगी।
डांट कोई जमकर लगा दें तो कांटोंसे भरी लगती है जींदगी,
प्यारसे सामने अगर कोई मुस्कुरा दें तो फुलों सी लगती हैं जींदगी।
कभी होती है रंगो भरी तो कभी होती है बेरंगसी जींदगी,
दिल से जीओ तो जन्म से मौत तक का एक खुबसूरत सफर हैं जींदगी।
- કૃતિ પટેલ "कृष्णप्रिया"