इश्क का डर से दूर दूर तक भी
कोई वास्ता नहीं होता.....
ये उधर भी कदम रखता है
जहाँ कोई रास्ता नही होता.....
सुना है इश्क़ एक आग का🔥 दरिया है---
इसे करने के बाद मिटना तो निश्चित है....
चाहे खोकर.... चाहे पाकर....
इसीलिए कहा है ....
इसकी मंजिल का कोई ठिकाना नहीं होता
इसके लिए कोई अपना कोई बेगाना नहीं होता
न जाने क्यों कब हो जाए किस से...
न जाने कब आ जाए किस पर
इसलिए तो कहते हैं ....
दिल का कोई ठिकाना नहीं होता....
जब चाहतों पर उतर आए ये...
फिर इसको समझाना वाजिब नहीं होता....
कोई कितना भी कर ले जतन...
करता है अपनी बस मनमानी ये,
इस पर किसी की बातों का....
असर या वशर का वज्र नहीं होता....
क्योंकि इश्क बेफिक्र है.....
इसको कोई फिकर नहीं होता....
मौत को भी गले लगा लेता है ये... क्योंकि इसको मौत का भी डर नहीं होता.....
ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़