लिखते ही सोचता रहा कि क्या सच मे लिखू ,
एक नटखट सुबह को साम या रात लिखू ।
जब मैने देखा पहेली दफा तुम को उसकदर,
वही हो जो में सोचता था या फिर ओर लिखू ।
ओजस्वी हो चलो ये तो हम ने भी माना सच है ,
पर खिलती कली कहु या गुलाब का फूल लिखू।
जो भी हो एक नया अंदाज़ हो तुम हो इस कदर ,
सुकून से आगे आता हुवा पवन का पाँव लिखू ।
गर कुछ न समझ मे आये मेरे ये जज्बात तो न सही,
कुछ भी नही बिना तस्वीर के बस हृदय का भाव लिखू।