दस दोहे....
भारतीय गणतंत्र का, इकहत्तरवां साल।
खुशियों की सौगात से,करता मालामाल।।
भारत के गणतंत्र का, करता जग यशगान ।
जनता के हित साधकर, सबका रखता मान।।
सदियों से भारत रहा, ऋषियों का यह देश।
मन में बसी सहिष्णुता, कभी न बदला वेश।।
भारत ऐसा देश यह ,जग में छवि है नेक ।
विविध लोग रहते यहाँ, भाषा धर्म अनेक ।।
धरती माँ के तुल्य है, सबकी पालनहार ।
वंदन अभिनंदन करें, और करें जयकार।।
जनता तो मिलकर चुने, अपनी ही सरकार ।
नेतागण निज स्वार्थवश,करते बंटाधार ।।
मंदिर में भगवान हैं, बाहर हैं शैतान ।
मानव खड़ा उदास है,सदियों से हैरान ।।
महुआ से लाहन बना, पीते कुछ परिवार ।
दूरी इससे जब रहे, तो जीना साकार ।।
बीहड़ वन में दहकते, जब पलाश के फूल ।
वासंती ऋतु देखकर, हिय से हटते शूल।।
जब आता मधुमास है, मन में उठे तरंग ।
तन मन खुद ही झूमता, ले हाथों में चंग ।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "