चाहऊ नहीं कुबेर कोश बेर एक शुरेश पद
चाहऊ नहीं ज्ञानिन में ज्ञानी कहाऊ मै
चाहऊ नहीं योग ध्यान धारणा समाधि हूते
जन्म मरण व्याधि रहित अविचल पद पाऊं मैं
उर में प्रभु एक अभिलास शेष ताहिं कर जोरी निज नाथ को सुनाऊं मैं
जिनपै मढ़रावै मन मधुक मुनीशन के उन मंजू पद कंजन के पनही बनी जाऊं मैं