अपनी सफल फ़िल्मों में साधना ने हिंदी और उर्दू के मेल से उपजी एक ऐसी तहज़ीब का माहौल बनाया जिसे अपने बोलने- चालने, पहनने- ओढ़ने में नई पीढ़ी दिल से अपनाने लगी। एक ऐसा फ़लसफ़ा, जिसमें नफ़रत के लिए कोई गुंजाइश न हो। जहां खलनायकी की कोई जगह न हो।
मानवीय भावनाएं प्रेम, छल, कपट, ईर्ष्या, करुणा, क्रोध, सहानुभूति, सुंदरता, वासना...सब हों लेकिन हिंसा,नफरत, लड़ाई - झगड़ा आदि फ़िल्म के पर्दे पर जगह न पाएं।
आख़िर लोग यहां दिल बहलाने के लिए आते हैं, अपनी कमाई से टिकट खरीद कर आते हैं, आपको क्या हक है कि आप उन्हें जीवन विरोधी कथानक परोसें और उनके सपनों को नेस्तनाबूद करके अपनी तिज़ोरी भरें।