आज काम करके सुबह जैसे ही फोन खोला तो एक अनजान नंबर का मैसेज देख माथा भन्ना गया हमारा तो। आजकल जितने भी सोशल साहित्यिक मंच है। इनसे मित्रता संबंधी इतने मैसेज आ रहे कि पूछो मत ! इन्होंने तो शादी से पहले हमारे पतिदेव द्वारा भेजे गए मैसेजों का रिकॉर्ड भी ध्वस्त कर दिया।' हे भगवान कल ही तो इतना लंबा चौड़ा चिट्ठा लिखकर भेजा था कि कोई हमें मित्रता संबंधी मैसेज ना भेजें और आज फिर।
' पहले सोचा चलो इसको बिना पढ़े ही डिलीट कर देते हैं। फिर मन में ख्याल आया। एक बार पढ़ने में कोई बुराई भी नहीं है। क्या पता कुछ और ही हो लेकिन नहीं जनाब! यह तो कुछ और ही था!
जिसका मजमून कुछ इस तरह था कि ' कैसी हो बरसों बाद तुम्हारी फोटो एफबी पर देखी। तो अपने आप को तुम्हें मैसेज करने से रोक नहीं पाया। तुम तो अभी भी वैसे ही दिखती हो जैसी कॉलेज टाइम में थी।' इसे पढ़ मैं मन ही मन बुदबुदाई चल झूठे इतनी झूठ बोल की हजम हो जाए। खैर आगे वह जनाब लिखते हैं कि चलो फिर से एक बार मिलते हैं । मैं तुमसे अपने दिल के वह सारे जज्बात बयां करना चाहते हूं। जो उस समय ना कह सका और आज भी तुम्हारे इंतज़ार में हूं। । अगर तुम्हारा जवाब हां में है तो आगे बात बढ़ाते हैं। पहचान तो गई हो न मुझे!
तुम्हारा .....
पढ़कर इतनी जोर से हंसी आई बस पूछो मत। पहचाना तो बिल्कुल नहीं तुम्हें भाईसाहब।पर यह पढ बाय गॉड बिल्कुल फिल्मी हीरोइन वाली फीलिंग आ रही थी। फिर गुस्सा भी आया कि
अरे बेवकूफ पहले यह मैसेज भेज दिया होता है तो हम भी अपने पतिदेव के मिथ्या भ्रम को तोड देते है। जो हमेशा हमें यह कह चिढ़ाते रहते हैं कि ' वह तो मैं ही सीधा सादा था जो तुम्हारे जाल में फंस वरना कोई तुम्हें....
खैर फिर हमने अपने बल्लियों उछलते दिल को समझाते हुए अपने उस अनाम प्रेमी के मैसेज को फोन से स्वाहा कर दिया।