राधे कृष्णा की ज्योति अलौकिक तीनो लोक में छाये रहे हैं
गीत: राधे कृष्णा की ज्योति अलौकिक.... ब्रह्मदत्त
राधे कृष्णा की ज्योति अलौकिक तीनो लोक में छाये रही है
भक्ति विवश एक प्रेम पुजारीं फिर भी दीप जलाए रही है
कृष्णा को गोकुल से राधे को
कृष्ण को गोकुल से राधे को
बरसाने से बुलाया रही है।
दोनो करो स्वीकार कृपा कर जोगन आरती गाए रही है
दोनो करो स्वीकार कृपा कर जोगन आरती गाए रही है
भोर भाए ती सांज ढले तक सेवा कौन इतने महायारो
स्नान कराए.. वो वस्त्रा ओढ़ाए.. वह भोग लगाए.. वो भोग लगाया।
काबसे निहारत आपकी और, काबसे निहारत आपकी और, की आप हमारी और निहारों
राधे कृष्णा हमारे धाम को होना वृंदावन धाम पधारो
राधे कृष्णा हमारे धाम को होना वृंदावन का परम पधारो
राधे कृष्णा की ज्योति अलौकिक तीनो लोक में छाये रही है
भक्ति विवश एक प्रेम पुजारीं फिर भी दीप जलाए रही है
कृष्णा को गोकुल से राधे को
कृष्ण को गोकुल से राधे को
बरसाने से बुलाये रही है।
ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़