Hindi Quote in Blog by Bharat Singh Rawat Kavi

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मजदूर

बना कर एक आलीशान सा घर छोड़ आए हैं।
सुनहरे ख्बाव का हर एक मंजर छोड़ आए हैं।।
भला मजदूर कब रहते हैं आलीशान महलों में।
न जाने किस गली में हम मुकद्दर छोड़ आए हैं।।

जमाने से नहीं चाही कभी भी हमने हमदर्दी।
हमारे जिस्म फौलादी नहीं लगती हमें सर्दी।।
मगर घर में हमारे तीन बच्चे फूल जैसे हैं।
उन्ही तीनों की खातिर एक चादर छोड़ आए हैं।।

कभी हम भी कहा ते थे किसी की आंख के तारे।
हमारे बालीदेनों को हुआ करते थे हम प्यारे।
मगर इस पेट की खातिर हुए हैं दूर हम उनसे।
हम उनकी बूढ़ी आंखों में समन्दर छोड़ आए हैं।।

परिंदे जैसे छूते हैं उंचाई आसमानों की।
तमन्ना हम भी रखते हैं सदा ऊंची उड़ानों की।
मगर हालात के हाथों हुए मजबूर कुछ ऐंसे।
जटायू की तरहां हम भी कहीं पर छोड़ आए हैं।।

हमारे वास्ते जिसने सकल परिवार छोड़ा है।
जनक जननी बहन भाई सभी का प्यार छोड़ा है।।
न जाने और कितना त्याग पत्नी से कराएंगे।
महाजन के यहां सब उसके जेवर छोड़ आए हैं।।

कभी जब तीन बच्चों में बटा करतीं हैं दो रोटी।
तो लगता है हमें रावत कि है क़िस्मत बहुत खोटी।।
हम अपने काम में मशगूल हैं ये सोच कर यारों।
सबेरे आज फिर खाली कनस्तर छोड़ आए हैं।।

रचनाकार
भरत सिंह रावत भोपाल
7999473420
9993685955
सर्वाधिक सुरक्षित

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