एक गीत
*यह काजल की कोर तुम्हारी*
खींच रही है निकट तुम्हारे,
मुझे प्रेम की डोर तुम्हारी।
कितनी मन भावन लगती है,
यह काजल की कोर तुम्हारी ।।
तुम मेरी जीवन धारा हो,
मेरे उर का स्पंदन हो।
महक स्फुटित होती जैसे,
तुम मलयागिरि का चंदन हो।।
अंग अंग सुचि सुंदर लगता,
और अंखियाँ चितचोर तुम्हारी।
कितनी मनभावन लगती है,
यह काजल की कोर तुम्हारी ।।
काजल में ढल हो जातीं हैं,
ये दोंनों अखिंयाँ मतवाली।
नयन कटार उतार हृदय पर,
लगती हो तुम भोली भाली।
अधरों की लाली लगती है,
ज्यों यौवन की भोर तुम्हारी।
कितनी मनभावन लगती है,
यह काजल की कोर तुम्हारी ।।
रचनाकार
भरत सिंह रावत
भोपाल।।7999473420