चन्द लम्हात के वास्ते ही सही....
मुस्कुरा कर मिली थी मुझे ज़िन्दगी...
मेरे कांधे पे सिर को झुकाना तेरा..
...मेरे सीने में खुद को छुपाना तेरा,
आके मेरी पनाहों में
शाम-ओ-सहर..
..कांच की तरह वो टूट जाना तेरा.
दर्द में भी ये लब मुस्कुरा जाते हैं
बीते लम्हें हमें जब भी याद आते हैं.......?