पिता सम पेड़'
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ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'
पिता-सम हैं पेड़ हमारे,
देते जीवन दान।
वृक्षहीन पृथ्वी पर कैसे ,
फैलेगी मुस्कान।
जीवन दूभर हो जाएगा ,
होंगे संकट में प्राण।
नहीं समय पर होगी वर्षा ,
भूमि बंजर होगी।
नहीं उपजेगा अन्न का दाना ,
कौन करेगा त्राण।
अब भी समय बचा है थोड़ा,
जाग जरा इंसान।
मत कटने दे पेड़ धरा से,
ये जीवन की शान।
काट दिए हैं जितने तुमने
लगाओ उतने ससम्मान।
जिम्मेदारी बड़ी मनुज की ,
है इसमें कल्याण।
नहीं विकास के ज़रा नाम पर ,
दो इनका बलिदान।
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