एक राह खड़ी है
रास्ता ताकते
एकटक निगाहें बिछाये
तुम गुजरती हो अक्सर
वहीं कहीं नजदीक से
मगर कभी उस तक नही आती
तुमसे छूकर जो गुजरती है हवा
वो उस राह से होकर भी जाती है
थोड़ी सी नमी लेकर आई है
शायद तुम्हारे होठों से टकराई है
कभी जो गुजरो
वहीँ कही नज़दीक से
तो हाल पूछ लेना उस राह से
या जो कभी उसतक भी चले जाना
बेख़याली में ही सही
उसको चंद सांसें दे आना ।।
कभी वो भी तुम्हारा हिस्सा थी .....
बेज़ुबान रास्ते हैं,
वो भी तुम्हे पुकारते हैं
उनका भी तुमपर हक़ है,
उतना ही जितना ..... मेरी खामोशी का तुमपर
सुन सको तो सुनो
कभी मुडक़र चंद कदम
फिर एक बार चलो
उसपर
जो एक राह खड़ी है
रास्ता ताकते
एकटक निगाहें बिछाये
कभी वो जो तुम्हारा हिस्सा थी .....
..........✍ परेश मेहता