*कुण्डलिया*
वैसा फल मिलता भई, जैसा बीजो पेड़
धक्का दें अब वक्त को, कल खुद मिले खदेड़
कल खुद मिले खदेड़, समय खुद पर भी आता
आज किया जो कृत्य, भाग्य कल का बन जाता
सतविंदर सम्पूर्ण, लौट आतें हैं फिर पल
जैसा अब हो कर्म, मिले तुमको वैसा फल।
©सतविन्द्र कुमार राणा